Wednesday 9 October 2013

आचार्य चाणक्य जी ने राजा के मंत्री गुणी होने के बारे में क्या कहा.

1-       राजा को अपने गुणी सहायको या सहधर्मियो के साथ रखकर ही राज्य भार लेना चाहिए |

भावार्थ- राजा अपने को राजोचित गुण से सम्पन्न बनाकर अपने ही जैसे गुणी सहायकों ,राज्य-कर्मियों नको साथ रखकर राज-काज करे |राजा या राज्य अधिकारी पहले अपने आपको को अपनी इंद्रियों को तथा अपने मन को नीति ,सत्य विनय आदि शासकोचित गुणों से सम्पन्न बना लें ,तभी राज्य संस्था में हाथ लगायें और तब योग्य गुणी साथियों कार्यभार संभालें |राजा अपने को राजोचित गुणों से सम्पन्न बनाकर अपने ही जैसे गुणी सहायकों को अपने साथ रखकर राज्य-भार संभाल विनम्रता का व्यवहार कर राज्य को स्थायित्व रूप दे सकते हैं |

2-       जो राजा मंत्रिपरिषद की बौद्दिक सहायता से हिन् होता है वह अपने कर्तव्याकर्तव्य का उचित निर्णय नहीं कर पाता है |


  भावार्थ- राज्याधिकारियों को प्रभावशाली मंत्रियों की आवश्यकता रहती है |इसमें सहायकों की अनिवार्य आवश्यकता है |राज्य की समस्याएं समस्त प्रजा की समस्याए होती है |इसलिए राजा या राज्याधिकारी लोग अपने राज्य में व्यवहारकुशल ,चरित्रवान सर्वश्रेष्ठ ,बुद्दिमानों का चयन कर उनके अनुभवों से लाभ उठाकर अपने राष्ट्र को विपत्तियों से बचायें और सम्पन्न करें |राजा को व्यवहारकुशल ,सदाचारी बिद्दनों को सदा अपना सहयोगी बनाये रखना चाहिए |

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