Monday 11 November 2013

चाणक्य का नीति-दर्पण.

चाणक्य नीति-दर्पण कहता है कि आचार्य चाणक्य भारत का महान गौरव है। चाणक्य कर्तव्य की वेदी पर मन की भावनाओं की होली जलाने वाले एक धैर्यमूर्ति भी थे। और उनके इसी आचरण पर भारत को गर्व है। महान शिक्षक, प्रखर राजनीतिज्ञ एवं अर्थशास्त्रकार चाणक्य का भारत में स्थान विशेष है। वे स्वभाव से स्वाभिमानी, संयमी तथा बहुप्रतिभा के धनी थे। 

चाणक्य ने अपने निवास स्थान पाटलीपुत्र से तक्षशीला प्रस्थान कर शिक्षा प्राप्त की और राजनीति के प्रखर प्राध्यापक बने। उन्होंने हमेशा ही देश को एकसूत्र में बांधने का प्रयास किया। भारत भर के जनपदों में वे घूमें। 

एक सामान्य आदमी से लेकर बड़े-बड़े विद्वानों को उन्होंने राष्ट्र के प्रति जागृत किया।अपने पराक्रमी शिष्य चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध के सिंहासन पर बिठाने के बाद वे महामंत्री बने पर फिर भी एक सामान्य कुटिया में रहे और अपने त्याग, साहस एवं विद्वत्ता को आमजन के समक्ष पेश किया। एक बार चीन के प्रसिद्ध यात्री फाह्यान ने जब यह देखा तो बहुत आश्चर्य व्यक्त किय, तो उन्होंने उत्तर दिया- 

जिस देश का महामंत्री सामान्य कुटिया में रहता है, और वहां के नागरिक भव्य भवनों में निवास करते हैं। वहां के नागरिकों को कभी कष्टों का सामना नहीं करना पड़ता। राजा और प्रजा दोनों सुखी रहती है। ऐसे महान विचारक और आदर्श से जीने वाले आचार्य चाणक्य आखिर इतने बड़े साम्राज्य के महामंत्री का जीवन इतना सादगीपूर्ण हो सकता है, उसने सोचा तक न था। 

चाणक्य ने उसे भारतीय जीवन पद्धति में सरलता के महत्व के बारे में समझाया। चाणक्य के इस आचरण से उस चीनी यात्री का मन उनके प्रति श्रद्धा से भर उठा। 


चाणक्य ने ली सीख .

1-  एक समय की बात है। चाणक्य अपमान भुला नहीं पा रहे थे। शिखा की खुली गांठ हर पल एहसास कराती कि धनानंद के राज्य को शीघ्राति शीघ्र नष्ट करना है। चंद्रगुप्त के रूप में एक ऐसा होनहार शिष्य उन्हें मिला था जिसको उन्होंने बचपन से ही मनोयोग पूर्वक तैयार किया था।अगर चाणक्य प्रकांड विद्वान थे तो चंद्रगुप्त भी असाधारण और अद्भुत शिष्य था। चाणक्य बदले की आग से इतना भर चुके थे कि उनका विवेक भी कई बार ठीक से काम नहीं करता था। 

चंद्रगुप्त ने लगभग पांच हजार घोड़ों की छोटी-सी सेना बना ली थी। सेना लेकर उन्होंने एक दिन भोर के समय ही मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दिया। चाणक्य, धनानंद की सेना और किलेबंदी का ठीक आकलन नहीं कर पाए और दोपहर से पहले ही धनानंद की सेना ने चंद्रगुप्त और उसके सहयोगियों को बुरी तरह मारा और खदेड़ दिया।चंद्रगुप्त बड़ी मुश्किल से जान बचाने में सफल हुए। चाणक्य भी एक घर में आकर छुप गए। वह रसोई के साथ ही कुछ मन अनाज रखने के लिए बने मिट्टी के निर्माण के पीछे छुपकर खड़े थे। पास ही चौके में एक दादी अपने पोते को खाना खिला रही थी। दादी ने उस रोज खिचड़ी बनाई थी। खिचड़ी गरमा-गरम थी। दादी ने खिचड़ी के बीच में छेद करके गरमा-गरम घी भी डाल दिया था और घड़े से पानी भरने गई थी। थोड़ी ही देर के बाद बच्चा जोर से चिल्ला रहा था और कह रहा था- जल गया, जल गया। 

दादी ने आकर देखा तो पाया कि बच्चे ने गरमा-गरम खिचड़ी के बीच में अंगुलियां डाल दी थीं।दादी बोली- 'तू चाणक्य की तरह मूर्ख है, अरे गरम खिचड़ी का स्वाद लेना हो तो उसे पहले कोनों से खाया जाता है और तूने मूर्खों की तरह बीच में ही हाथ डाल दिया और अब रो रहा है...।' चाणक्य बाहर निकल आए और बुढ़िया के पांव छूए और बोले- आप सही कहती हैं कि मैं मूर्ख ही था तभी राज्य की राजधानी पर आक्रमण कर दिया और आज हम सबको जान के लाले पड़े हुए हैं।

चाणक्य ने उसके बाद मगध को चारों तरफ से धीरे-धीरे कमजोर करना शुरू किया और एक दिन चंद्रगुप्त मौर्य को मगध का शासक बनाने में सफल हुए। ­

चाणक्य की मातृ भक्ति.

1 बहुत पुरानी बात है। गुप्त काल में मगध में जन्मे चाणक्य बड़े मातृभक्त और विद्यापरायण थे। एक दिन उनकी माता रो रही थी। 

माता से कारण पूछा तो उन्होंने कहा, 'तेरे अगले दांत राजा होने के लक्षण हैं। तू बड़ा होने पर राजा बनेगा और मुझे भूल जाएगा।' चाणक्य हंसते हुए बाहर गए और दोनों दांत तोड़कर ले आए और बोले, 'अब ये लक्षण मिट गए, अब मैं तेरी सेवा में ही रहूंगा। तू आज्ञा देगी तो आगे चलकर राष्ट्र देवता की साधना करूंगा।' 

बड़े होने पर चाणक्य पैदल चलकर तक्षशिला गए और वहां चौबीस वर्ष पढ़े। अध्यापकों की सेवा करने में वे इतना रस लेते थे कि सब उनके प्राणप्रिय बन गए। सभी ने उन्हें मन से पढ़ाया और अनेक विषयों में पारंगत बना दिया।लौटकर मगध आए तो उन्होंने एक पाठशाला चलाई और अनेक विद्यार्थी अपने सहयोगी बनाए। उन दिनों मगध का राजा नंद दमन और अत्याचारों पर तुला था और यूनानी भी देश पर बार-बार आक्रमण करता था। इन हालात के चलते समाज में भय और आतंक का माहौल व्याप्त हो रहा था। जनता इस आतंक और अत्याचार से मुक्ति चाहती थी।ऐसे में चाणक्य ने एक प्रतिभावान युवक चंद्रगुप्त को आगे किया और उनका साथ लेकर दक्षिण तथा पंजाब का दौरा किया। सहायता के लिए सेना इकट्ठी की और सभी आक्रमणकारियों को सदा के लिए विमुख कर दिया। लौटे तो नंद से भी गद्दी छीन ली। चाणक्य ने चंद्रगुप्त का चक्रवर्ती राजा की तरह अभिषेक किया और स्वयं धर्म प्रचार तथा विद्या विस्तार में लग गए। आजीवन वे अधर्म अनीति से मोर्चा लेते रहे। निस्संदेह उन्होंने यह कार्य अपनी महाबुद्धि के दम पर ही किया


चाणक्य की तर्क-शक्ति.

एक दिन चाणक्य का एक परिचित उनके पास आया और उत्साह से कहने लगा, 'आप जानते हैं, अभी-अभी मैंने आपके मित्र के बारे में क्या सुना है?'

चाणक्य अपनी तर्क-शक्ति, ज्ञान और व्यवहार-कुशलता के लिए विख्यात थे। उन्होंने अपने परिचित से कहा, 'आपकी बात मैं सुनूं, इसके पहले मैं चाहूंगा कि आप त्रिगुण परीक्षण से गुजरें।'

उस परिचित ने पूछा - 'यह त्रिगुण परीक्षण क्या है?'

चाणक्य ने समझाया- 'आप मुझे मेरे मित्र के बारे में बताएं, इससे पहले अच्छा यह होगा कि जो कहें, उसे थोड़ा परख लें, थोड़ा छान लें। इसीलिए मैं इस प्रक्रिया को त्रिगुण परीक्षण कहता हूं। इस कसौटी के अनुसार जानना जरूरी है कि जो आप कहने वाले हैं, वह सत्य है। आप खुद उसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं?'

'नहीं,' - वह आदमी बोला, 'वास्तव में मैंने इसे कहीं सुना था। खुद देखा या अनुभव नहीं किया था।'

'ठीक है,' - चाणक्य ने कहा, 'आपको पता नहीं है कि यह बात सत्य है या असत्य।

दूसरी कसौटी है -'अच्छाई। क्या आप मुझे मेरे मित्र की कोई अच्छाई बताने वाले हैं?' 'नहीं,' - उस व्यक्ति ने कहा।

इस पर चाणक्य बोले,' जो आप कहने वाले हैं, वह न तो सत्य है, न ही अच्छा। चलिए, तीसरा परीक्षण कर ही डालते हैं।' 'तीसरी कसौटी है - उपयोगिता। जो आप कहने वाले हैं, वह क्या मेरे लिए उपयोगी है?'

'नहीं, ऐसा तो नहीं है।' सुनकर चाणक्य ने आखिरी बात कह दी।'

आप मुझे जो बताने वाले हैं, वह न सत्य है, न अच्छा और न ही उपयोगी, फिर आप मुझे बताना क्यों चाहते हैं?'

Friday 8 November 2013

चाणक्य जी ने बताया कि जब कोई पक्ष दूसरे पक्ष को अधिक तेज देखे और सन्धि करना आवश्यक हो तो उससे सन्धि कैसे करें .

1-      सन्धनार्थी दो में से दोनों को तेजस्विता प्रभावशीलता तथा प्रताप ही सच्ची सन्धि का कारण होता है |


   भावार्थ-  जब कोई पक्ष दूसरे पक्ष में अधिक तेज देखे और सन्धि करना आवश्यक मने ,तब अपने सम्मान को सुरिक्षित रखकर हीयमान होते हुए भी शत्रु की अपनी हीयमानता न दिखाकर ,बन्दरघुड़की दिखाते हुए उससे सन्धि करे |सन्धि करने में अपने सम्मान और अस्तित्व को सुरिक्षित रखना अपना विशेष कर्तव्य माने यदि व्यक्ति को अपने विरोधी पक्ष में तेजस्विता व् प्रभावशीलता दिखाई दे तो उससे सन्धि तो करे किन्तु अपने सम्मान और अस्तित्व का विशेष ध्यान रखकर करे |

चाणक्य जी ने बताया कि अगर कोई राजा निर्बल और नीतिमान है तो वह शक्तिशाली कैसे बन सकता जाने.

1-      निर्बल ,नीतिमान राजा का तात्कालिक कल्याण इसी में है की वह अधिक शक्तिशाली अन्यायी सशक्त राज्य के साथ सन्धि की नीति को अपनाकर आत्मरक्षा करे और उपस्थिति संग्राम को टाल दे |


 भावार्थ-  नीतिमान पर निर्बल राजा का कर्तव्य है वह अपने से अधिक शक्तिशाली सशक्त राष्ट्र के साथ सन्धि कर अपनी आत्मरक्षा करे |वह अपनी दुर्बल अवस्था का शत्रु को पता चलने से पहले ही अपनी और से सन्धि का प्रस्ताव रखकर आत्मरक्षा का प्रवन्ध करे |वह युद्द स्थगित करने के अवसर का अपनी शक्तिवृद्दि में उपयोग करे |नीतिमान राजा के लिए ये दोनों ही बातें अभीष्ट नहीं है कि सन्धि के द्वारा अपने से बलवान अधार्मिक शत्रु के हाथों में आत्मविक्रय करे या पराजय निश्चित होने पर उससे संग्राम का पिट जाये |

Monday 4 November 2013

चाणक्य जी ने बताया कि शत्रु-मित्र अकारण नहीं होते .

1-      शत्रु-मित्र अकारण होकर कारणवश हुआ करते हैं |


  भावार्थ-  सदाचरण या उपकार से मित्र तथा असदाचरण या अनुपकार से शत्रु बन जाया करते हैं |नित्यमित्र,सहजमित्र तथा कृत्रिममित्र तीन प्रकार के मित्र होते हैं |अकारण पाल्यपालक बन जाने वाले नित्यमित्र ,कुल परम्परा से चले आने वाले मित्र सहजमित्र तथा प्रयोजन से स्नेह करने वाले  कृत्रिममित्र कहे गये हैं |कोई भी व्यक्ति बिना किसी कारण के व्यक्ति का शत्रु या मित्र नहीं बनता |यदि किसी व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है तो वह शत्रु बन जाता है यदि किसी व्यक्ति के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता तो वह मित्र बन जाता |अतः हमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए |

चाणक्य जी ने बताया कि राजाओं और व्यक्तियों को अपने दुश्मन के दोस्तों से भी सतर्क रहना चाहिए क्योंकि .

1-      किसी राष्ट्र से शत्रुता रखने वाले राष्ट्र परस्पर मित्र बन जाया करते हैं |


  भावार्थ- निकट आने वाले शत्रु राज्य से अगला राज्य जिसकी हमारे शत्रु से शत्रुता रहना स्वभाविक है उस शत्रु के विरुद्द स्वभाव से ही हमारा मित्र बन जाता है |किसी शत्रु से शत्रुता करने वाले अनेक राष्ट्रों का परस्पर मित्रता का बन्धन स्वभाविक है |किसी राष्ट्र से शत्रुता रखने वाले राष्ट्र परस्पर मित्र बन जाया करते हैं |यह राष्ट्रनायकों का निश्चित स्वभाव माना गया |अतः राजाओं को अपने दुश्मन के दोस्त से भी सतर्क रहना चाहिए | 

Sunday 3 November 2013

Subh Dipawali.

दीपोत्सव की आप सभो को बहुत बहुत शुभकामनाये 
गौरी नंदन गणेश जी और माँ लक्ष्मी जी की कृपा से आप धन धान्य,
सुख, समृद्धि ,यश ,तप और सद्गुणो के परिपूर्ण हो 
जय श्री गणेश ,,,,,,जय माँ लक्ष्मी

Saturday 26 October 2013

Chapter 15: Chanakya Neeti .

Chanakya Neeti Quotes from chapter 15 . Have a look upon them.

A man who has mercy and compassion for all creatures is religious for sure. He does not require any religious symbol or sign to prove  his religiousness.
A guru who shows his disciple the path of righteousness leaves a huge debt. It cannot be payed back as none of the physical objects is so precious.
There are two ways to deal with wicked people and thorns. One is to crush them under your boot and other is to stay away from them.
One who wears dirty clothes, has filthy teeth, oversleeps, and uses foul language. Such person cannot gain prosperity and good health.
When a person looses money. then his woman, friends, servants, and relatives also move away. Upon regaining money they will try to come back.  This means that money is your ultimate relative in this physical world.
The wealth earned by unjust means will perish for sure.
A wrong act done by a person with power is hailed and many times is  justified. On the other hand, a good task done by a poor might not grab that much attention.
Even if a gem be placed on foot and a mirror on head,. Still, the gem will not loose its value.
The knowledge in holy scriptures is like a huge sea. For a man with busy like it will not be possible to read and understand everything. He must act like a swan i.e. attain what is useful and leave the rest.
If a man neglects a hungry and tired  traveler that came to him in hope for some food and himself begins eating. Surely, such person is a charlatan.
If a man recites religious scriptures without bothering to understand the ideas being stated. Such person is not better than a ladle that is dipped in all kinds of food, but is unable to taste even one.
Frequent visitors loose respect. For example: Moon appears so bright until it enters home of Sun (on daily basis) .
Greed is the root cause of troubles. A black bee enjoys nectar from a lotus flower, but  in search of more it goes to forests  and paddy fields where it gets hurt from thorns of different flowers.
The bond of love is supreme  and has a very significant impact on life of a person.  A black bee can drill hole in hard wood, but gets trapped in lotus flower. It can get its  freedom  quite easily, but it hesitates to hurt the flower. 
The fragrance of sandalwood remains even upon chopping it, a bull-elephant does not stops mating even in old age, and sugarcane tastes sweet even upon being crushed. Such is the nature of a high-class men that remains unchanged even in poverty.

* A few verses have been ignored to match modern context. The lines above focus on meaning than simple translation.

चाणक्य जी ने बताया कि राष्ट्र और लोग पारस्परिक शत्रु कैसे बन जाते है .

स्वदेश से अव्यवहित देश के राजा स्वभाव से शत्रु होते हैं |


भावार्थ- जिनसे हर घड़ी सीमा संघर्ष आदि कलह होने की संभावना बनी रहती है ,वह परस्पर शत्रु बन जाते हैं |राज्यधिकारी लोग निकटवर्ती राज्यों से सदा सतर्क रहें और उनकी विरोधी गतिविधि देखते रहें |अहिताचरण करने वालों को संगठित करने वाला स्वभाविक बन्धन है |इस मधुर बन्धन में आबद्द न रहकर दूसरे का सुख छीनने तथा दुःख पहुचाने की स्वार्थी प्रवृत्ति रखने वाले लोग पारस्परिक शत्रु बन जाते हैं |राज्यधिकारी लोग निकटवर्ती राज्यों से सदा सतर्क रहें और उनकी स्वविरोधी गतिविधि देखते रहें |राजा को सदा अपने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था के प्रति सतर्क रहना चाहिए |

चाणक्य जी ने बताया कि राजा बनने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए .

नीतिमत्ता का अनुगमन करना ही राजा की योग्यता है |


   भावार्थ- हेतुशास्त्र ,दण्डनीति तथा अर्थशास्त्र नीतिमत्ता के अन्तर्गत आते हैं |शासन-व्यवस्था से सम्बन्ध रखने वालों को इन सब राज्यशास्त्रों का सूक्ष्म ज्ञान होना चाहिए |यदि राज्यधिकारी लोग राज्यशास्त्र से अपरचित रहकर तथा अपने कृत्यों पर कोई सामाजिक नियन्त्रण न रख स्वेच्क्षाचारिता से राज्य करेंगे तो प्रवल अनिष्ट होने सुनिश्चित हैं |राजा को नीतिप्रोक्त नियमों के अनुसार ही आत्मरक्षा तथा प्रजा का का पालन करना चाहिए |बहुत-से राजा अविनय या दुनीति से विनाश पा चुके हैं |अतः राजा को शासन-व्यवस्था से संबधित राज्यशास्त्रों की पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है |

Thursday 24 October 2013

Chanakya Neeti : Art of Disguise.

One of the most appreciated lines of Chanakya Neeti is “Even is a snake is not poisonous, it should pretend to be …
A few valid explanations for those lines are :
·         Do not let your competitor know about your weaknesses.
·         Show your strength when needed
·         Keep your enemies in disguise
Anyhow, those lines have nothing to do with flattery and show-off.  Many misinterpreted it an faced significant losses.
A man must know the entities that must be reveled and what things to be kept as secret. The art of winning is a bout being one step smarter than your opponent.
Suppose you own a business and definitely there will be few competitors. Now, even if your business is not going well; you must pretend everything to be fine.
Why? If they came to know about your bad condition then one or more competitors will double their efforts for throwing you out of business.
In-case, the opponent is not sure about your state then he will execute the plans slowly under fear for his move to backfire.
Note: The quote has nothing to do with showing-off. The whole concept is about acting smart. Its good to show power but not your possession.
Chanakya  has suggested disguise is a very useful tool. Provided you know the trick for valid implementation.


चाणक्य जी ने बताया कि सन्धि विग्रह का व्यवहार कौन से राष्ट्रों के साथ होता है .

1-      राज्य संपृक्त वे पड़ोसी राज्यमण्डल कहलाते हैं जिनके साथ सन्धि और विग्रह होते हैं |

 भावार्थ- सन्धि विग्रहों का व्यवहार पड़ोसी राष्ट्रों के साथ होता है |सन्धि विग्रह के क्षेत्र राष्ट्रमण्डल कहलाते हैं |सन्धि का अर्थ सन्धान तथा विग्रह का अर्थ विरुद्द कर्म कर या विरोधी कर्म अपनाना है |धनदानादि उपायों के द्वारा प्रेम का सम्बन्ध जोड़ना या मित्र बनाना सन्धि कही जाती है |राजा लोग कुछ पदार्थ ले-देकर आपस में प्रतिज्ञाबद्द होते हैं |इसी को पण भी कहते हैं |पण से होने वाली सन्धि पणबद्द कहलाती है |जब कोई किसी राजा का अपराध करता है ,तब ही विग्रह खड़ा होता है |दूसरे राष्ट्र में दाह ,लूटमार आदि भी विद्रोह के ही रूप हैं |प्रकट विग्रह ,कूट विग्रह ,मौन विग्रह ,भेद से भी विग्रह के तीन भेद बताये गये हैं |कोई भी दुर्वल राजा बलि को पणदान से जब तक के लिए सन्तुष्ट करता है ,तब तक उन दोनों की सन्धि रहती है |

चाणक्य जी ने बताया कि किस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था राष्ट्र के लिए आवश्यक है .

1-      आवाम अथवा परराष्ट्र सम्बन्धी कर्तव्य-मण्डल अर्थात पड़ोसी राष्ट्र से सम्बन्ध रखता है |


   भावार्थ- शत्रुओं के कार्यों या उनकी गतिविधियों की देखभाल ,उन पर वरावर रखने वाला तन्त्र ही सफलता के साथ राज्य बनाये रखता है |पड़ोसी राष्ट्रों की गतिविधियों पर नजर रखना आवश्यक तन्त्र है |अपने राज्य की सुरक्षा व् सुद्रढ़ता के लिए शत्रुओं के कार्यों या उनकी गतिविधियों पर नजर रखनी आवश्यक है |यह राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है |

Wednesday 23 October 2013

Chanakya Neeti: Chapter 14.

Have a look on the inspirational ideas from chapter 14 of Chanakya Neeti.

In this world there are only three gems. They are water, food grains, and good language. On the other hand fools consider those stones to be precious gems.
Poverty, diseases, conflicts, and other problems in life are nothing, but the fruits from tree of ones own misdeeds.
You can earn money after losing it, you can make new friends, and also you can get another wife, but this is not the case with body. [take good care of your health]
Numerous straws reunite together to frame a thatch to provide protection against rain. In the same manner, when men unite together to form an army they can easily vanquish the enemy. In other words, “Unity possesses great strength”.
The following have great tendency to spread. They are oil on water,  a secret with a man of unjust character,  donation to a worthy man, and learning of a wise person.  [Yep! oil spreads on surface of water, a wicked person will reveal your secret to everyone,  donation to right kind of person will add to your glory, and a wise man keeps on learning]
One becomes enlightened and awaken on listening to the religious talks and sermons, on attending some funeral, and on falling sick severely. [... how many of us think about God only when in pain. It is not strange and very true fact]
Normally, a man regrets upon his act of sin after accomplishing it.  If same wisdom be shown before doing the action then the man will definitely attain Nirvana.
There is no need to get satisfied with knowledge, act of charity, politeness, penance, and worldly wisdom. As this worlds is full of such gems and you cannot get enough of them. [i.e. always a chance for doing better.]
Is someone lives in heart of someone then distances don’t matter. On other hand a person who has no place in heart doesn’t matter, even upon being physically near.
It will be good for you to not get too close to a king, fire, and women. Also, don’t stay too far from them otherwise you will get deprived of the rewards.  [... maintain the balance in life, of life and for life]
One must cautiously deal with fire, woman, fool, snake, and members of royalty. They may prove fatal.
Only a capable man who lives life as per principles of religion is alive in real senses . If not, then the person is living a life of no use.
A really wise man is well aware about the art of speaking, he talks as per situation, speak the words that add to his fame, and shows anger in accordance with the power he possesses.
The three views of three beings for a very beautiful woman were. She will be equivalent to a corpse for some Yogi. A lustful man will consider her as an object of desire. For a dog, she will be nothing, but a lump of meat. [... contains very deep meaning. Discretion advised]
A wise man will never reveal his secret to anyone. He won’t discuss formula of his secret medicine, his religious resolves, problem in family, consumption of bad food, and his sexual acts. Also, he will not indulge himself in such discussions. (specially the ill talks about others) [... I know you have a lot of important tasks to perform and care for time. Dont you!]
A cuckoo bird will not sing until arrival of spring i.e. there is a right time for different tasks.

O man! you must leave the company of wicked persons and must come closer to noble fellows. You must do good deeds all day and night with faith in God because this world will perish one day.  [not on the dooms day, but with your end your world will also end at that very instance]