Sunday, 13 October 2013

चाणक्य जी ने बताया कि व्यक्ति को अपने कार्य किस प्रकार से करने चाहिए और कार्य किस प्रकार से पूर्ण होते है .

1-    भविष्य में किये जाने वाले सब कार्य चिंतन से ही सुसपन्न होते हैं |

  भावार्थ- विशेषज्ञों के साथ उन कर्मों की विधियों ,साधनों तथा कर्ताओं की सांगोपांग चिन्ता ही समस्त कर्मों की मूल प्रारंम्भिक आधारशिला है |कर्मों के समस्त उपक्रम विवेकपूर्वक होने पर ही समीचीन होते हैं |तब उनको सुफलो त्पाद होने का सुनिश्चित विश्वास हो जाता है |भविष्य में किये जाने वाले सब काम मन्त्र अर्थात कार्यक्रम की पूर्वकालीन सुचिन्ता से ही सुसम्पन्न होते हैं |अतः सोचकर किये हुए कर्म ही समीचीन होते हैं |

2-     किसी भी कार्य के संबंध की हित-अहित संबंधी योजना गुप्त रखने से ही कार्य सिद्द हो पाता है |

 भावार्थ-  कार्यों के उदेश्य ,उनके साधन ,उनके स्थान ,उनकी बिधि गुप्त रखने से ही कार्य पूर्ण होते हैं |कार्यसिद्दि से पहले उसका पता शत्रुओं को चल जाने पर उसे उन्हें व्यर्थ करने का अनायास अवसर मिल जाता है और तब  कार्य सिद्द होने से रह जाता है | अतः कार्य सम्बन्धी हिताहित चिन्तारूपी मन्त्र को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्द हो पाता है |कार्य के सिद्द होने के लिए कार्य को गुप्त रखना आवश्यक होता है |

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