1- भविष्य में किये जाने वाले सब कार्य चिंतन से ही सुसपन्न होते हैं |
भावार्थ- विशेषज्ञों के
साथ उन कर्मों की विधियों ,साधनों तथा कर्ताओं की सांगोपांग चिन्ता ही समस्त
कर्मों की मूल प्रारंम्भिक आधारशिला है |कर्मों के समस्त उपक्रम विवेकपूर्वक होने
पर ही समीचीन होते हैं |तब उनको सुफलो त्पाद होने का सुनिश्चित विश्वास हो जाता है
|भविष्य में किये जाने वाले सब काम मन्त्र अर्थात कार्यक्रम की पूर्वकालीन
सुचिन्ता से ही सुसम्पन्न होते हैं |अतः सोचकर किये हुए कर्म ही समीचीन होते हैं |
2- किसी भी कार्य के संबंध की हित-अहित संबंधी योजना गुप्त रखने से ही कार्य सिद्द हो पाता है |
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