1-
राजा की अर्थ सम्पत्ति से प्रजा की भी अर्थ की वृद्दि स्वाभाविक रूप
से हो जाती है |
भावार्थ -शासन की सुव्यवस्था
राजा-प्रजा दोनों को सम्पन्न बना देती है |राज्य की आर्थिक सम्पन्नता या उसका
एश्वर्य लाभ ही प्रजा की अर्थ वृद्दि कर सकता है या प्रजा को राज्य-संस्था में
अनुरक्त बना कर रख सकता है |यदि राजा राज्य-कर्मचारियों नीतिवान ,विनयी और
जितेन्द्रीय होते हैं ,जो फिर प्रजा भी इन सब गुणों से सम्पन्न हो जाती है |प्रजा
राज्य के अनुसार अपना चरित्र वनती है |प्रजा को राज्य-संस्था में अनुरक्त बनाकर
रखने राज्य में राज्य की आर्थिक सम्पन्नता का हाथ होता है |
2-
यदि प्रजाजन नीतिसम्पन्न हैं तो किसी कारण राजा
का आभाव हो जाने पर भी राज्य सुपरिचालित रहता है |
भावार्थ - नीतिमान राजा
के आभाव से मंत्रीगण,राज्यकर्मचारी तथा कर देने वाली प्रजा के प्रमुख पुरुष भी
,राजोचित ,नीति ,विनय ,कर्म ,कौशल ,न्यायान्याय ,कार्याकाये विवेक से सम्पन्न हो
जाते हैं |येसी स्थति में राजा के असाध्य रोगी या अकस्मात अन्त हो जाने पर भी उस
राज्य का परिचालन बना रहता है |देश के जनमत योग्य राज्य सत्ता के प्रभाव से
सुशिक्षित होकर स्वयं ही राज्य संस्था का संचालन बन जाता है |जनमत के अतिरिक्त
राज्य सत्ता को जन्म देने वाली और कोई शक्ति नहीं होती है |अतः नीतिसम्पन्न होने
पर बिना राजा के भी राज्य ठीक ढंग से चलता है |
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