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जो मनुष्य शासकोचित सत्य व्यवहार करना सीख लेते हैं वही जितेन्द्रीय होते हैं |
भावार्थ- जो व्यक्ति
जितेन्द्रीय होता है ,वह अपने कर्तव्य का पालन कर सकता है |मनुष्य का सत्यनिष्ठा
या कर्तव्यपरायणता ही उसकी जितात्मा होती है | मनुष्य की अन्तरात्मा की प्रसन्नता
,निर्मलता स्वच्छता ही उसका जितात्मता होना ही विजय है |नीति तथा विज्ञान से युक्त
मानव को सम्पदितात्मता कहा गया है |सत्य ही नीति का सार या सर्वस्व है |सत्य के
बिना मनुष्य का आत्म-विकास नहीं होता है |सत्य दर्शन के बिना समस्त प्रजा वर्ग में
राज्य-अधिकारियों की वह आत्मबुद्दि नहीं हो सकती है ,जो एक अच्छा लोककल्याणकारी
राज्य चलाने वाले राजाओं या राज अधिकारीयों की अनिवार्य आवश्यकता है |जो राज्य
अधिकारी या कर्मचारी अपने पर ही सयंम ,शासन नहीं रख सकता है ,वह ओरो पर क्या शासन
करेगा |
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