1- पुत्र ,मित्र और बन्धु-बान्धव-ये सब साधुओं से निवृत =विमुख हो जाते परन्तु जो उन साधुओं
के साथ गमन करते हैं,उनका सत्संग करते हैं,उनके अनुकूल आचरण करते हैं ,उस पुण्य से उनका सारा कुल ,परिवार सुकृति बन जाता है |
2- मछली ,कछ्वी और मादा पक्षी ,चिड़ियाँ आदि जैसे क्रमशः दर्शन ,ध्यान और स्पर्श से अपने-अपने बच्चे को सदा पालती हैं ,उसी प्रकार श्रेठ पुरुषों की संगति
भी मनुष्यों का पालन करती है .उनका भला करती है |
3- जब तक शरीर स्वस्थ, निरोग है और जब तक मौत
दूर है तब तक आत्मा का कल्याण ,धर्माचरण पुण्यकर्म कर लेने चाहिएं
,मृत्यु हों जाने पर क्या करेगा ,अर्थात कुछ नहीं कर सकेगा |
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