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शत्रु-मित्र अकारण न होकर कारणवश हुआ करते हैं |
भावार्थ- सदाचरण या उपकार से मित्र तथा असदाचरण या
अनुपकार से शत्रु बन जाया करते हैं |नित्यमित्र,सहजमित्र तथा कृत्रिममित्र तीन
प्रकार के मित्र होते हैं |अकारण पाल्यपालक बन जाने वाले नित्यमित्र ,कुल परम्परा
से चले आने वाले मित्र सहजमित्र तथा प्रयोजन से स्नेह करने वाले कृत्रिममित्र कहे गये हैं |कोई भी व्यक्ति बिना
किसी कारण के व्यक्ति का शत्रु या मित्र नहीं बनता |यदि किसी व्यक्ति के साथ बुरा
व्यवहार किया जाता है तो वह शत्रु बन जाता है यदि किसी व्यक्ति के साथ अच्छा
व्यवहार किया जाता तो वह मित्र बन जाता |अतः हमें दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार
करना चाहिए |
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