1- प्रकांड विद्धान जो ज्ञान के
कारण वृद्द हो गये हैं ,की सेवा ही विनय का आधार है |
भावार्थ - ज्ञानवृद्दो की सेवा करने से ही विनय का जन्म होता है |
मनुष्य को विद्धानों की संगती करनी चाहिए | विनय अर्थात नैतिकता ,नम्रता
,शासन-कुशलता , आदि रूपों वाली सत्यरूपी स्थिर संपति अनुभवी ज्ञानवृद्द लोगो की
सेवा में श्रद्दापूर्वक बार-बार ज्ञानार्थी रूप में उपस्थति होते रहने से ही
प्राप्त होता है |दंडनीति तथा व्यवहार कुशलता के पाठ ज्ञानवृद्द व्यक्ति से ही
सीखे जा सकते हैं | राजा और राज्य कर्मचारियों को भी विनयपूर्वक विद्धानों की सेवा
कर उनसे प्राप्त करना चाहिए | मनुष्य ज्ञानवृद्दो के पास संचित सत्यरूपी स्थिर धन
को सत्संग से प्राप्त कर सकते हैं | ज्ञानवृद्दो की सेवा विनय का आधार होती है |
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