Sunday, 6 October 2013

आचार्य चाणक्य जी ने इंद्रियों के बारे में क्या कहा.

1-  इंद्रियों पर विजय विनय के द्धारा प्राप्त की जा सकती है |यही इंद्रियों पर विजय का मुख्य साधन है |


 भावार्थ - विनयी मनुष्य की इंद्रिया उसकी सुविचारित स्पष्ट आज्ञा के के बिना संसार में कहीं एक पैर भी नहीं डालती हैं | उसकी इंद्रियों के पैरो में शम की वह भारी श्रंखता पड़ी रहती है ,जो उन्हें कुमार्ग पर जाने ही नहीं देती है | नम्रता ,सुशीलता आदि सब विनीत-धर्म हैं | मन के धर्मपरायण होते ही इंद्रिया अपने आप विजित हो जाती हैं और आत्मसमर्पण करके रहने लगती हैं | विनयी मनुष्य अपनी स्थिरिता तथा धीरता के प्रभाव से अपनी इंद्रियों पर अधिकार कर लेता है | अविनीत मनुष्य उद्दंड होता है |

No comments:

Post a Comment