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स्वराष्ट्र सम्बन्धी,परराष्ट्र सम्बन्धी कर्तव्य अपनी
राष्ट्र व्यवस्था के अंग होते हैं |
भावार्थ- परराष्ट्र की
नीति के बिना राजतन्त्र अधुरा है |परराष्ट्र का सुद्रढ़ होना अत्यावश्यक है |इसके
विना कोई भी राष्ट्र सुद्रढ़ नहीं रह सकता है |स्वराष्ट्र सम्बन्धी तथा परराष्ट्र से
व्यवहार विनमय सम्बन्धी दोनों प्रकार के कर्तव्य राजतन्त्र में सम्मिलित होते हैं
|अर्थात उसके भले-बुरे के अनुसार भले-बुरे होते हैं |परराष्ट्र चिन्ता के बिना
राजतन्त्र अधूरा रहता है |तंत्र अर्थात स्वराष्ट्र अर्थात अपनी प्रजा के जीवन
साधनों की रक्षा तथा आवाम नाम से प्रसिद्द परराष्ट्र चिन्ता या उससे व्यवहार ये
दोनों बातें राज्य-व्यवस्था की इतिकर्तव्यता में सम्मिलित हैं |
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