1-
किसी भी प्रकार
की असावधानी होने पर पर योजना की गोपनीयता भंग हो जाने से सारा कार्य बिगड़ जाता है
|
भावार्थ- राज-काज प्रबंध अन्याय विषयों संबंधी योजना पर
येसे सहायको से विचार-विर्मश करना चाहिए जो उसे गोपनीय रख सकते हैं |यदि कोई
उत्तरदायित्व वाला मन्त्री मन्त्र भेद कर दे तो उसे मरवा डालना चाहिए |मन्त्रियों
के भी कुछ मन्त्री होते हैं तथा उनके भी कुछ श्रोता तथा मन्त्रणादाता होते हैं |यही
परम्परा मन्त्र भेद किया करती है |इसलिए राजा जिस किसी मन्त्री से मन्त्रणा न कर
केवल प्रधानमन्त्री से करे और वह उसकी सुरक्षा का पूर्ण उत्तरदायी हो |उस
प्रधानमन्त्री को आवश्यकता प्रतीत हो तो वह अपने उस विषय के विशेषज्ञों से
मन्त्रणा कर बात का मर्म जानकर उस पर राजा के साथ विचार-विमर्श कर अन्तिम निर्णय
पर पहुचे |
2-
यदि राजा या राज्यधिकारी मन्त्र रक्षा में थोड़ा
सा प्रमाद रखेंगे तो कर्तव्य की गोपनीयता को सुरिक्षित नहीं रख सकेंगे |
भावार्थ- यदि राजा या
राज्यधिकारी मन्त्र रक्षा में थोड़ा-सा भी प्रमाद करेंगे अर्थात मन्त्र सुनने के
अनधिकारी व्यक्तियों से कर्तव्य की गोपनीयता को सुरक्षित न रख सकेंगे तो वे अपना
रहस्य शत्रुओं को देकर उनके वश में चले जायेंगे | सब कार्यों में सफलता मन्त्रों
से ही मिलती है |मन्त्र भेद से राज्यों के योगक्षेम मिट जाते हैं |राज्य की
सुरक्षा मन्त्र बल से ही होती है |शत्रु को ज्ञात हो जाने से मन्त्र का व्यर्थ हो
जाना ही मन्त्र का नाश है |मन्त्र का नाश शक्ति का ही नाश है |
3-
मन्त्र की रक्षा उसके फूट निकलने के समस्त द्वारों की रोक करनी चाहिए |
भावार्थ- एक राष्ट्र दूसरे
राष्ट्र का भेद लेने के लिए नानाविधि कुटिल उपायों का प्रयोग करता है |उन सब कुटिल
प्रयोगों से अपनी मन्त्रणा की रक्षा रक्षा करना अत्यन्त गम्भीर कर्तव्य है
|असावधानता ,मद ,स्वप्नविप्रलाप ,विषयकमना ,गर्व ,गुप्त श्रोता ,मन्त्रकाल में मूढ़
या अबोध समझकर न हटाया हुआ व्यक्ति एकान्त में विचार से निर्णीत गुप्त बात को वाहर
फैला देता है |इन सबसे मन्त्र की रक्षा करनी चाहिए |अतः मन्त्र क गोपनीयता के
सावधानी रखनी आवश्यक है |
4-
मन्त्र की पूर्ण सुरक्षा तथा उसकी पुर्णतः
अर्थात निर्दोषता से ही राज्यश्री की वृद्दि होती है |
भावार्थ- राजकाज संबंधी
आवश्यक मन्त्रणा अर्थात योजनाओं के सुरिक्षित रहने पर ही राष्ट्र समृद्धशाली बनता
है | अतः इस ओर पूर्ण सतर्कता आवश्यक है |यदि एक राष्ट्र के मन्त्र दुसरे राष्ट्र
के हाथों में पहुंच जाते हैं तो उस राष्ट्र का विनाश होने में अधिक समय नहीं लगता
है |राष्ट्र की सुरक्षा व् समृद्धि के लिए योजनाओं को गुप्त रखना आवश्यक होता है
|अतः राज्यकर्मचारी विश्वासपूर्ण होने चाहिए ,क्योंकि इन्ही द्वारा योजना गुप्त रह
सकती है और दुश्मनों के हाथों में भी पहुंच सकती है |
5-
कर्तव्य में शक्ति के संचार करने वाली वस्तु
मन्त्र ही है |राज्य की सुरक्षा मन्त्र से ही होती है |
भावार्थ- शत्रु को ज्ञात
हो जाने से मन्त्र का व्यर्थ हो जाना ही मन्त्र का नाश है |मन्त्र का नाश शक्ति का
नाश है |इस अर्थ में मन्त्र रक्षा ही शक्ति रक्षा है |मन्त्र को सुरिक्षित रखना ही
शक्तिमान बनना है |मन्त्र का सुरिक्षित न रहने पर राष्ट्र नष्ट हो जाता है
|राष्ट्र की सुरक्षा व्यवस्था के लिए मन्त्र का गुप्त रहना आवश्यक है |मन्त्र का
नाश शक्ति का नाश है |मन्त्र की रक्षा ही शक्ति की रक्षा है |राज्य की सुरक्षा
मन्त्र बल से ही होती है |शत्रु को ज्ञात हो जाने से मन्त्र का व्यर्थ हो जाना ही
मन्त्र का नाश है |
6-
मन्त्र अँधेरे में मार्ग दिखाने वाले दीपक के
समान कर्यान्ध को उसका कर्तव्य-मार्ग दिखा देता है |
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