Saturday, 26 October 2013

चाणक्य जी ने बताया कि राष्ट्र और लोग पारस्परिक शत्रु कैसे बन जाते है .

स्वदेश से अव्यवहित देश के राजा स्वभाव से शत्रु होते हैं |


भावार्थ- जिनसे हर घड़ी सीमा संघर्ष आदि कलह होने की संभावना बनी रहती है ,वह परस्पर शत्रु बन जाते हैं |राज्यधिकारी लोग निकटवर्ती राज्यों से सदा सतर्क रहें और उनकी विरोधी गतिविधि देखते रहें |अहिताचरण करने वालों को संगठित करने वाला स्वभाविक बन्धन है |इस मधुर बन्धन में आबद्द न रहकर दूसरे का सुख छीनने तथा दुःख पहुचाने की स्वार्थी प्रवृत्ति रखने वाले लोग पारस्परिक शत्रु बन जाते हैं |राज्यधिकारी लोग निकटवर्ती राज्यों से सदा सतर्क रहें और उनकी स्वविरोधी गतिविधि देखते रहें |राजा को सदा अपने राज्य की सुरक्षा व्यवस्था के प्रति सतर्क रहना चाहिए |

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