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समाज में प्रचलित या व्यव्ह्त नीतिशास्त्र ,राज्य-व्यवस्था
की नीति के अधीन होता है |
भावार्थ- राष्ट्र तब ही
नीतिपरायण रह सकता है ,जब उसका राजतन्त्र नीतियुक्त हो |यदि राजतन्त्र में नीति का
प्रयोग न हो तो लोक में नीति नाम की कोई वस्तु नहीं रहती |नीति राजतन्त्र में
सीमित और राजतन्त्र से ही सुरिक्षित रहती है |राजतन्त्र मनुष्य समाज के साथ-साथ
चलता है |नीतिमत्ता मानव समाज की विशेषता है |राज्यव्यवस्था नीतिसम्पन्न हो तो
समाज में नीति का जन्म देने तथा फलने-फूलने का अवसर मिल जाता है |राज्यसंस्था के
नीतिसम्पन्न होने पर ही देश में नीति कायम रहती है |राजतन्त्र को न मानने या भंग
करने वाला नीतिहीन कहलाता है |समाज से बहार चले जाना या समाज को अस्वीकार कर देना
ही नीतिहीनता है |राजतन्त्र ने ही नीति को जन्म दिया है |पहले समाज बना फिर नीति
बनी |
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