Thursday, 24 October 2013

चाणक्य जी ने बताया कि सन्धि विग्रह का व्यवहार कौन से राष्ट्रों के साथ होता है .

1-      राज्य संपृक्त वे पड़ोसी राज्यमण्डल कहलाते हैं जिनके साथ सन्धि और विग्रह होते हैं |

 भावार्थ- सन्धि विग्रहों का व्यवहार पड़ोसी राष्ट्रों के साथ होता है |सन्धि विग्रह के क्षेत्र राष्ट्रमण्डल कहलाते हैं |सन्धि का अर्थ सन्धान तथा विग्रह का अर्थ विरुद्द कर्म कर या विरोधी कर्म अपनाना है |धनदानादि उपायों के द्वारा प्रेम का सम्बन्ध जोड़ना या मित्र बनाना सन्धि कही जाती है |राजा लोग कुछ पदार्थ ले-देकर आपस में प्रतिज्ञाबद्द होते हैं |इसी को पण भी कहते हैं |पण से होने वाली सन्धि पणबद्द कहलाती है |जब कोई किसी राजा का अपराध करता है ,तब ही विग्रह खड़ा होता है |दूसरे राष्ट्र में दाह ,लूटमार आदि भी विद्रोह के ही रूप हैं |प्रकट विग्रह ,कूट विग्रह ,मौन विग्रह ,भेद से भी विग्रह के तीन भेद बताये गये हैं |कोई भी दुर्वल राजा बलि को पणदान से जब तक के लिए सन्तुष्ट करता है ,तब तक उन दोनों की सन्धि रहती है |

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